पंचलड़ी
कुण घाली आ राड़ भायला
करलै आड़ी बाड़ भायला
इण बास मांय बसणो है तो
जड़ना हुसी किवाड़ भायला
बत्तीसी बचणी मुस्कल है
चभका मारै जाड़ भायला
देस म्हारलो बूढो हुग्यो
डग-डग हालै नाड़ भायला
बिन बिरखा सूकी है खेती
करी पड़ी है पाड़ भायला
मदन गोपाल लढ़ा
सोमवार, 22 मार्च 2010
पंचलड़ी
प्रस्तुतकर्ता मदन गोपाल लढ़ा पर 11:51 am 0 टिप्पणियाँ
सदस्यता लें
संदेश (Atom)