tag:blogger.com,1999:blog-10863665836708229432024-03-05T07:14:08.254-08:00मनवारमदन गोपाल लढ़ाhttp://www.blogger.com/profile/09142924226575943172noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-1086366583670822943.post-15583963197919449302012-01-12T01:11:00.000-08:002012-01-12T01:26:36.320-08:00कहाणी<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiZRgkD5emWfio6cWhgk8Iv6_eiEsjBSABW1Uq-Z5pX_ofwmzYHSLdLeX8ylejcqVZKARPkc3VNVZLe6UXxjd3fOO0CJAxr6e8UskW5tDudildB50pO0OyEM5SKSeDdAmQy7QWRxZ0O9_g/s1600/Madan+Ladha.JPG"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 140px; height: 200px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiZRgkD5emWfio6cWhgk8Iv6_eiEsjBSABW1Uq-Z5pX_ofwmzYHSLdLeX8ylejcqVZKARPkc3VNVZLe6UXxjd3fOO0CJAxr6e8UskW5tDudildB50pO0OyEM5SKSeDdAmQy7QWRxZ0O9_g/s320/Madan+Ladha.JPG" border="0" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5696671765022079938" /></a><br /><div><span ><b>कहाणी</b></span></div><div><span ><br /></span></div><div><b><span >खड़को</span></b></div><div><span ><br /></span></div><div><span >जगमग बजार । च्यारुंमेर च्यानणौ । भारी भीड़ । गाड़ी-घोड़ा मावै ई कोनी ।</span></div><div><span >दियाळी रै मौकै लोग नूंवी जिनसां बपरावण सारु बजार में उमड़ जावै ।</span></div><div><span >भांत-भंतीली दुकानां सजायोड़ी । कठै ई मिठाई, कठैई पटाखा, कठैई कपड़ा-लत्ता</span></div><div><span >तौ कठैई रमतिया । गिराकां नै बुलावण सारु लोडस्पीकर न्यारा बाजै । मतळब बजार में रुणक ई रुणक । पटाखां री दुकान माथै मेळौ मंड्योड़ौ । पटाखा ई हजार भांत रा । टिकड़ी,</span></div><div><span >फुलझड़ी, सूतळी बंब, घूम चकरी, रंग-बिरंगी अनार, गंगा-जमना, सीटी , लाल</span></div><div><span >लड़ी, हथगोळा , तीर अर नीं जाणै कांई-कांई । नांव चेतै राखणा ई मुस्कल ।</span></div><div><span >गिराक आवै अर देखतां-ई-देखतां झोळौ भर ’र ले जावै ।</span></div><div><span > "बिल कित्ता रौ ?"</span></div><div><span > "सात सौ रीपिया ।"</span></div><div><span > "म्हारा?"</span></div><div><span > "आपरा हजार हुग्या सा !.... बेसी क्यांरा है ? जी खुस हुय जावैला ।</span></div><div><span >पटाखा रा धमीड़ बाजसी तौ पाड़ौसी मूंड़ौ लुकौ’र सो जासी । बास आळा बात करैला</span></div><div><span >!... ऐक ई पटाखौ फुस्स हुयजै तौ पूठा ल्या’र न्हाख दिया ! ठेठ शिवकाशी</span></div><div><span >सूं माल मंगायौ है । चीज रा दाम लागै । साल में ऐकर आवै दियाळी । टाबर रौ</span></div><div><span >जी करग्यौ , काठ ना करौ ...."</span></div><div><span > दुकान रै ऐन साम्ही ऊभौ गणपत पटखां कानी ललचाई निजरां सूं तकावै । दस</span></div><div><span >रीपिया रौ ऐक नोट उणरी जीवणी मुट्ठी में भेळो करयौड़ौ ।बौ मनोमन पटाखा</span></div><div><span >छांटै-लड़ी........ नीं चक्करी....... तीर ठीक रैसी...... गंगा जमना रौ</span></div><div><span >धमीड़ तकड़ौ हुवै !</span></div><div><span > पण अंटी में फसत दस रीपिया । बेसी लावै ई कठै सूं? आ तौ भली हुई के काल</span></div><div><span >नरेगा रौ हफ्तौ मिलग्यौ अर मा उणरी रीगळ्यां सुण’र टूठगी, नींतर मोठ री</span></div><div><span >छिंया बैठ्यौ रैवौ भलां ई ! मा नै ई के औळमौ? बा कठै सूं ल्या देवै हुंडी</span></div><div><span >? ऐकली लुगाई सारु पांच जीवां री गुवाड़ी धिकाणी कोनी । इण मूंघीवाड़ै में</span></div><div><span >बड़ा-बड़ा रा डेरुं बाजै । किंया थाकौ धिकावै, आ तौ बा ई जाणै !</span></div><div><span >गणपत चेतै करै जद उणरा बापू दियाळी पर घरै बावड़ता तो ऐक झोळौ पटाखा</span></div><div><span >ल्यावता । पण अबै बापू ई कोनी रैया तो कुण ल्यावै पटाखा ! बापू कैवता -</span></div><div><span >"थूं तो पटाखा छोड़े, म्हैं तौ सांचला गोळां ने छूटता देखूं !"</span></div><div><span >ऐक दिन बै खुद बंब री सीध में आग्या । महाजन फ़ील्ड फ़ायरिंग रेंज में</span></div><div><span >स्क्रेप चुगतां ऐक जीवतों बंब बां री जिनगाणी खाग्यौ । गणपत री आंख्यां</span></div><div><span >बैवण लागगी । सात बरस बीतग्या । अबै बौ चवदै बरस रो हुग्यो । लारले सात</span></div><div><span >बरसां मे मा कदी दिवाळी कोनी मनायी । मनावै ई कीकर ? उणरै जीवण में तौ</span></div><div><span >अंधारौ ई अंधारौ है ।</span></div><div><span >घर में तो दियाळी कोनी धोकीजै, पण बीजे घरां में पटाखां रौ रोळौ सुण’र</span></div><div><span >टाबरां रौ जी करै । ईण बात नै समझतां ई मा आज गणपत नै पटाखां सारूं दस</span></div><div><span >रीपिया दिया है । बौ आधी घंटा तांई पटाखां कानी पसवाड़ै खड्यां तकावतौ</span></div><div><span >रैयौ अर छेकड़ हिम्मत कर’र नैड़ै पूग्यो ।</span></div><div><span >"ओ सूतळी बंब कित्ता रो है?"</span></div><div><span >"तीस रीपीया रौ, कित्ता देवूं?"</span></div><div><span >"तीस रौ है, पण म्हारै खनै तौ फ़गत दस रीपिया है ।"</span></div><div><span >"दस रौ तौ टिकडया रौ डब्बो आसी ।"</span></div><div><span >"तौ अनार दे दयो !"</span></div><div><span >"चार अनारां रौ डब्बौ पच्चीस रो है । खुली कोनी बेचां ।"</span></div><div><span >"एक काढ देवौ नी !"</span></div><div><span >"कह दियो नीं खुल्ली कोनी बेचां । अबै मगज मत खा । आगै चाल ।"</span></div><div><span >दुकान पर गिराकां रौ जमघट लाग्यौड़ौ । इण भीड़ बिचाळै दस रीपिया री पूंजी</span></div><div><span >रै धणी नै कठै ठौड़ ? दुकानदार बांवड़ौ झाल’र बीं नै आगीनै धक्को दियो ।</span></div><div><span >"धंधा रौ टैम है । खोटी ना कर ! रास्तौ नाप थारौ...."</span></div><div><span >गणपत अण्मनौ सो आगै चाल पड़्यो, पण निजरां अजै ई पटाखां माथै टिक्योड़ी ।</span></div><div><span >बीं री आख्यां सीली हुयगी । थकां पीसा दुकानदार पटाखां सारू नटग्यो । बौ</span></div><div><span >मनोमन अळोच करे- दस रीपिया ई किती मुस्कल सूं कबाड़्या है । मा तौ पांच</span></div><div><span >माथै ई अड़्गी । किता नौरा काढणा पड़्या । हजार खठै सूं लावूं?</span></div><div><span >बिना पटाखां घरै ई कीकर जावै ? गळी में पटाखां रा धमाधम बाजता हुसी ।</span></div><div><span >पटवारी जी रै घर रै आगे मगरियौ मंड्योड़ौ हुसी । मूळियौ, भंवरियौ, सरबती</span></div><div><span >आद हाथ में फ़ुलझड़यां लैर’र नाचता हुसी ।</span></div><div><span >फ़ुलझड़्या रो ध्यान आवतां ई बि’रै मुंढै मूळक सांचारी, पण अगले ई छिण</span></div><div><span >भळे उदासी बापरगी । बण सिसकारौ नाख्यो । मा बतावै, बां रौ बाप तो</span></div><div><span >पटवारी है । बो खुदो खुद सूं बंतळ करै- ओ पटवारी कियां बणीजै? काईं मा</span></div><div><span >पटवारी बण सके? फेर तो मौज बणजै । मोकळा पटाखां छोड़ूं । रोज नूवां गाबा</span></div><div><span >ल्यावूं । मूळिये जिसी साईकल ई मंगावू ।</span></div><div><span >बो खुद सूं सुवाल करे- मा क्यूं कोनी बणै पटवारी?</span></div><div><span >पण उथळौ कुण देवे?</span></div><div><span >बाज़ार में भीड़ बिचालै बो साव अकेलौ । बेमतळब चाल्यां जावे । साम्हीं</span></div><div><span >चौराहो आग्यो । बीं रा पग थमग्या । आगे किनै जावणो है? चौराहे सूं</span></div><div><span >च्यारूं दिस मारग फंटै, पण बीं सारू एक ई मारग कोनी ।</span></div><div><span >चौराहे रै सूवें बिचालै नेहरू जी री मूरती । धौळै संगमरमर सूं बण्योड़ी</span></div><div><span >मूंढै बोलती मूरती । नेहरू जी रो मूळकतो उणियारौ । मूरती रै च्यारूं मैर</span></div><div><span >गोळाई में दूब लाग्योड़ी । दिन मे अठै लोगड़ा बैठया रैवै, पण अबार ऐन सूनेड़।</span></div><div><span >गणपत मूरती ने ओळखै । देस रा पेलड़ा प्रधानमंत्री चाचा नेहरू । पांचवी री</span></div><div><span >पोथी में नेहरू जी री फोटू ही ।</span></div><div><span >सर जी कैवता- "नेहरू जी टाबरां रौ भोत लाड़ राखता । स्कूल छूटी तो पोथी</span></div><div><span >पानड़ा ई छूटग्या । अबै तो जेठिये रै ढाबे माथे ऐंठा ठीकर धोय’र बगत</span></div><div><span >टिपाणो है । जद बो मोढै बस्तो टांग्यां टाबरां ने पोसाळ जावता देखै तो उण</span></div><div><span >रौ ई डाढौ जी करै । बो ई चमड़े रा काळा जूता पेर’र अर गळे में टाई बांध’र</span></div><div><span >स्कूल जावणौ चावै, पण......। ओ ’पण’ उण रौ सबसूं मोटो दुसमी है । हरेक</span></div><div><span >ठोड बीं रै सपनां नै चकनाचूर कर न्हाखै ।</span></div><div><span >बीं नै रीस आ जावै । बो चाचा नेहरू री मूरती कानी तकावै । मनोमन सुवाल</span></div><div><span >पूछे- कांई बे अबे ई उणनै लाड करै? काईं बे उणने बो’ळा सारा पटाखा दिरा</span></div><div><span >सकै ?"</span></div><div><span >चाणचकै पटाखां री लांबी धमाधम सूं उणरौ ध्यान टूटै । स्यात कोई हजार</span></div><div><span >पटाखां री बाल्टी रै तूळी लगाई हुवैला । बो गूंजे में हाथ घाले । दस</span></div><div><span >रीपीया रौ मुड़्यो-तुड़्यो नोट अर एक दियासलाई री डब्बी । बो नोट हताळी पर</span></div><div><span >सीधौ करै । नोट रै जीवणै पासे चस्मो लगायेड़ा मूळ्कता गांधी बापू । वौ</span></div><div><span >गांधी जी नै ई ओळखै । सर जी केवता -"गांधी जी ई देस ने आजाद करवायो" ।</span></div><div><span >वौ खुद री आजादी रै बाबत सोचै । बीं नै आपरी मजबूरी पर झाळ आ जावै। बो</span></div><div><span >नोट ने भेळौ कर’र पूठो गूंजै मे घाल लैवै । फेर बो डब्बी बारै काढै अर एक</span></div><div><span >तूळी बेमतळब जगा’र हेठै फेंक दैवै अर कई ताळ तांई बि ने तकावतो रैवै ।</span></div><div><span >चाणचकै बो उभौ हुयो अर नेहरू जी री मूरती ने दिख्यां बिना पुठौ बाजार</span></div><div><span >कानी चाल पड़्यो । खाथौ-खाथौ । गढ सूं डावड़ै मुड़तां ई पटाखां री दुकान ।</span></div><div><span >अबै बठै भीड़ कोनी, फगत २-३ जणा पटाखां रा मौल भाव करे हा । घणखरा लोग</span></div><div><span >पटाखा लेग्या अर अबे घरे धमाधम करणै री बेळा ही । सेठ दुकान रै मायनै</span></div><div><span >हिसाब-किताब में लाग्योड़ो अर सेल्समेन पटाखा बेचण मे मगन ।</span></div><div><span >गणपत दुकान सूं बीसेक फूट दूर ऐकर ठमयो अर पछै उंतावळा पगां सूं नेड़ै गयो</span></div><div><span >। बण कणां गूंजे सूं दियासलाई री डिब्बी काढी अर कणां तूळी बाळ’र पटाखां</span></div><div><span >माथै फेंकी, कीं ठा कौनी पड़्यो । पण जद पटाखां री भड़ाभड़ गिगनारां गूंजण</span></div><div><span >ढूकी तद सगळां रे काळजै खड़कौ हुयो । गणपत मुठ्ठी में थूक’र भाज छूट्यो ।</span></div><div><span >बां पटाखां री धमाधम कई ताळ चाली अर गांव-गुवाड़ सुणीजी।</span></div><div><span ><br /></span></div><div><b><span >मदन गोपाल लढ़ा </span></b></div><div> </div><div><br /></div>मदन गोपाल लढ़ाhttp://www.blogger.com/profile/09142924226575943172noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1086366583670822943.post-51234334443598694032010-03-22T11:51:00.000-07:002010-03-22T11:55:30.986-07:00पंचलड़ी<span class=""></span><br /><strong><span style="font-size:130%;color:#000099;">पंचलड़ी</span></strong><br /><span class=""></span><br /><span style="color:#990000;">कुण घाली आ राड़ भायला<br />करलै आड़ी बाड़ भायला<br /></span><br /><span style="color:#990000;">इण बास मांय बसणो है तो<br />जड़ना हुसी किवाड़ भायला<br /><span class=""></span></span><br /><span style="color:#990000;">बत्तीसी बचणी मुस्कल है<br />चभका मारै जाड़ भायला<br /><span class=""></span></span><br /><span style="color:#990000;">देस म्हारलो बूढो हुग्यो<br />डग-डग हालै नाड़ भायला<br /><span class=""></span></span><br /><span style="color:#990000;">बिन बिरखा सूकी है खेती<br />करी पड़ी है पाड़ भायला<br /></span><br /><span class=""></span><span style="color:#000099;">मदन गोपाल लढ़ा</span>मदन गोपाल लढ़ाhttp://www.blogger.com/profile/09142924226575943172noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1086366583670822943.post-44210211328929825252010-01-16T02:35:00.001-08:002010-01-31T03:26:17.814-08:00सुवाल भासा रो कोनी वजूद रो है<div style="TEXT-ALIGN: justify"><br /></div><p style="FONT-WEIGHT: bold; MARGIN: 0pt; COLOR: rgb(102,51,255); TEXT-ALIGN: center"><span style="font-size:180%;"><span style="font-family:Mangal;">सुवाल भासा रो कोनी वजूद रो है</span></span></p><p style="FONT-WEIGHT: bold; MARGIN: 0pt; COLOR: rgb(102,51,255); TEXT-ALIGN: justify"><span style="font-size:180%;"><span style="font-family:Mangal;"><span style="font-size:0;"><br /></span></span></span></p><p style="MARGIN: 0pt; TEXT-ALIGN: justify"><span style="font-family:Mangal;"></span></p><p style="MARGIN: 0pt; TEXT-ALIGN: justify"><br /></p><p style="MARGIN: 0pt; TEXT-ALIGN: justify"><span style="font-family:Mangal;"><span style="COLOR: rgb(255,0,0)"><span style="FONT-WEIGHT: bold">ख</span></span>म्मा घणी सा! ख्यातनाम साहित्यकार नानूराम </span><span style="font-family:Mangal;">संस्कर्ता कैया करता-<span style="FONT-WEIGHT: bold; COLOR: rgb(51,51,255)">"</span><span style="FONT-WEIGHT: bold; COLOR: rgb(51,51,255)">थे</span><span style="FONT-WEIGHT: bold; COLOR: rgb(51,51,255)"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold; COLOR: rgb(51,51,255)">भूल</span><span style="FONT-WEIGHT: bold; COLOR: rgb(51,51,255)"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold; COLOR: rgb(51,51,255)">रैया</span><span style="FONT-WEIGHT: bold; COLOR: rgb(51,51,255)"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold; COLOR: rgb(51,51,255)">क्यूं</span><span style="FONT-WEIGHT: bold; COLOR: rgb(51,51,255)"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold; COLOR: rgb(51,51,255)">भासा</span><span style="FONT-WEIGHT: bold; COLOR: rgb(51,51,255)"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold; COLOR: rgb(51,51,255)">नै</span><span style="FONT-WEIGHT: bold; COLOR: rgb(51,51,255)">, </span><span style="FONT-WEIGHT: bold; COLOR: rgb(51,51,255)">जो</span><span style="COLOR: rgb(51,51,255)"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold; COLOR: rgb(51,51,255)"></span></span><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" style="FONT-WEIGHT: bold; COLOR: rgb(51,51,255)" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjE1RxLOt13vaCoxhak1FBSGEnV88QgqL23iymMZIeZblsmBHc3Bg-nigmfy_l4DXYXUq6fI_cqgmzOYOqtdwsLwmqYiDCpLWmRVjaUKyeofRxIAL5YAFwunh4s1UiTL0amIXJMDlK8O80/s1600-h/flickr-4000037858-image.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5427284494958809650" style="FLOAT: left; MARGIN: 0pt 10px 10px 0pt; WIDTH: 320px; CURSOR: pointer; HEIGHT: 214px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjE1RxLOt13vaCoxhak1FBSGEnV88QgqL23iymMZIeZblsmBHc3Bg-nigmfy_l4DXYXUq6fI_cqgmzOYOqtdwsLwmqYiDCpLWmRVjaUKyeofRxIAL5YAFwunh4s1UiTL0amIXJMDlK8O80/s320/flickr-4000037858-image.jpg" border="0" /></a><span style="font-family:Mangal;"><span style="FONT-WEIGHT: bold; COLOR: rgb(51,51,255)">मायड़</span><span style="FONT-WEIGHT: bold; COLOR: rgb(51,51,255)"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold; COLOR: rgb(51,51,255)">राजस्थानी</span><span style="FONT-WEIGHT: bold; COLOR: rgb(51,51,255)"> </span><span style="FONT-WEIGHT: bold; COLOR: rgb(51,51,255)">है</span><span style="FONT-WEIGHT: bold; COLOR: rgb(51,51,255)">"</span> पण आपां साचाणी मायड़ भासा नै भूल रैया हां. बजार री "जय हो" बिचाळै आंपणी भासा गमती दीसै. नूंवी पीढ़ी इण जुगां जूनी विरासत सू तर-तर दूर जांवती लखावै. मोटै सहरां री तो बात ई छोडो, छोटै कस्बां-गांवां में ई मायड़ भासा बोलणै रो मतळब पिछड़ोपण मानीजै. गळी-गळी खुल्योड़ा प्राईवेट स्कूल टाबरां नै अंगरेज बणावण रो ठेको ले राख्यो है.जीयाजूण री भाजा-न्हासी में साहित्य ई खूंटी टंगग्यो. लिखारा फ़गत आपसी मुबारकबाद सूं रंज जावै सबद रो ओज मोळो पड़तो लखावै. राज रै एजेण्डै में साहित्य अर संस्कृति रा नांव तकात कोनी. भासा रै बिगसाव सारू इणरो रुजगार सूं जुड़णो जरूरी है, राज री मानता जरूरी है.पण राजनीतिक इंछासगति रै बिना मायड़ भासा मानता खातर झूरै. संवैधानिक मान्यता सारू राजस्थान विधानसभा रो संकळप ६ बरसां सूं दिल्ली में रूळै पण सत्ता री चोटी माथै बेठ्या नेतावां नै अजैं तांई ६३ बरसां सूं आपरो जायज हक मांगती भासा रो हेलो कोनी सुणीज्यो. अफ़सोस तो इण बात रो है कै इण भौम रा जाया-जलम्या अर अठै रै लोगां रै वोटां सूं चुणीज्योड़ा सांसद-विधायक ई मुढ़ै रै ताळो लगायां बेठ्या है. काई ठा क्यूं सगळा नीं बोलण री सौगन खा राखी है. तीन बरसां सूं राजस्थानी भासा साहित्य अर संस्कृति अकादमी वेतन भत्ता डॊट कॊम बण्योड़ी है. अकादमी री मासिक पत्रिका "जागती जोत" एक बरस सूं बंद पड़ी है.साहित्य री कूंत में गुड़-गोबर एक धार तोलीजै. पुरस्कारां री रेवड़ी बांटणै में ई धाप’र पखापखी चालै.पण किंनै ई कीं मतळब कोनी. सगळा सोचै-आंपणो के लेवै. इण मून रो कारण समझ में कोनी आवै. जद तांई आ सुनेड़ नीं भांगीजैला, नीं तो भासा रो भलो हुवैला अर नीं साहित्य रो.</span></p><p style="MARGIN: 0pt; TEXT-ALIGN: justify"><span style="font-family:Mangal;">मनवार आप सिरदारां नै घणैमान नूंतै. इण मून नै तोड़ण सारू आगै आवो. खरी कैवण अर सुणण री बांण घालो. साहित्य अर भासा री सबळाई खातर कलम सांभो! इण बाबत आपरै घण्मूंघै बिचारां री अडीक है.</span></p><p style="MARGIN: 0pt; TEXT-ALIGN: justify"><br /></p><p style="MARGIN: 0pt; TEXT-ALIGN: justify"><span style="font-family:Mangal;">जै राजस्थान, जै हिंद.</span></p><p style="MARGIN: 0pt; TEXT-ALIGN: justify"><span style="font-family:Mangal;"></span></p><p style="MARGIN: 0pt; TEXT-ALIGN: justify"><br /></p><p style="FONT-WEIGHT: bold; MARGIN: 0pt; COLOR: rgb(153,0,0); TEXT-ALIGN: justify"><span style="font-family:Mangal;">मदन गोपाल लढा</span></p><p style="FONT-WEIGHT: bold; MARGIN: 0pt; TEXT-ALIGN: justify"><span style="COLOR: rgb(51,51,255);font-family:Mangal;" >संपादक</span><br /></p>मदन गोपाल लढ़ाhttp://www.blogger.com/profile/09142924226575943172noreply@blogger.com0