शनिवार, 16 जनवरी 2010

सुवाल भासा रो कोनी वजूद रो है


सुवाल भासा रो कोनी वजूद रो है



म्मा घणी सा! ख्यातनाम साहित्यकार नानूराम संस्कर्ता कैया करता-"थे भूल रैया क्यूं भासा नै, जो मायड़ राजस्थानी है" पण आपां साचाणी मायड़ भासा नै भूल रैया हां. बजार री "जय हो" बिचाळै आंपणी भासा गमती दीसै. नूंवी पीढ़ी इण जुगां जूनी विरासत सू तर-तर दूर जांवती लखावै. मोटै सहरां री तो बात ई छोडो, छोटै कस्बां-गांवां में ई मायड़ भासा बोलणै रो मतळब पिछड़ोपण मानीजै. गळी-गळी खुल्योड़ा प्राईवेट स्कूल टाबरां नै अंगरेज बणावण रो ठेको ले राख्यो है.जीयाजूण री भाजा-न्हासी में साहित्य ई खूंटी टंगग्यो. लिखारा फ़गत आपसी मुबारकबाद सूं रंज जावै सबद रो ओज मोळो पड़तो लखावै. राज रै एजेण्डै में साहित्य अर संस्कृति रा नांव तकात कोनी. भासा रै बिगसाव सारू इणरो रुजगार सूं जुड़णो जरूरी है, राज री मानता जरूरी है.पण राजनीतिक इंछासगति रै बिना मायड़ भासा मानता खातर झूरै. संवैधानिक मान्यता सारू राजस्थान विधानसभा रो संकळप ६ बरसां सूं दिल्ली में रूळै पण सत्ता री चोटी माथै बेठ्या नेतावां नै अजैं तांई ६३ बरसां सूं आपरो जायज हक मांगती भासा रो हेलो कोनी सुणीज्यो. अफ़सोस तो इण बात रो है कै इण भौम रा जाया-जलम्या अर अठै रै लोगां रै वोटां सूं चुणीज्योड़ा सांसद-विधायक ई मुढ़ै रै ताळो लगायां बेठ्या है. काई ठा क्यूं सगळा नीं बोलण री सौगन खा राखी है. तीन बरसां सूं राजस्थानी भासा साहित्य अर संस्कृति अकादमी वेतन भत्ता डॊट कॊम बण्योड़ी है. अकादमी री मासिक पत्रिका "जागती जोत" एक बरस सूं बंद पड़ी है.साहित्य री कूंत में गुड़-गोबर एक धार तोलीजै. पुरस्कारां री रेवड़ी बांटणै में ई धाप’र पखापखी चालै.पण किंनै ई कीं मतळब कोनी. सगळा सोचै-आंपणो के लेवै. इण मून रो कारण समझ में कोनी आवै. जद तांई आ सुनेड़ नीं भांगीजैला, नीं तो भासा रो भलो हुवैला अर नीं साहित्य रो.

मनवार आप सिरदारां नै घणैमान नूंतै. इण मून नै तोड़ण सारू आगै आवो. खरी कैवण अर सुणण री बांण घालो. साहित्य अर भासा री सबळाई खातर कलम सांभो! इण बाबत आपरै घण्मूंघै बिचारां री अडीक है.


जै राजस्थान, जै हिंद.


मदन गोपाल लढा

संपादक